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किन इलाकों में उगा सकते हैं हरा सोना 'बांस', क्या ये बिजनेस आइडिया बदल देगा किसानों की किस्मत, यहां जानें

Bamboo Farming Business: बांस की खेती से 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर बांस 2,500 से 3,000 रुपये प्रति टन तक बिकता है. पौधों की रोपाई के 3 साल बाद हर साल 7 से 8 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर कमा सकते हैं.

 
Bamboo Farming

Bamboo Farming in India: आज के समय पर खेती सिर्फ किसानों के पेट पालने का जरिया नहीं है, बल्कि इसे बिजनेस में तब्दील करने की कवायद की जा रही है. अच्छे मुनाफे क तलाश में अब किसान धान, गेहूं, गन्ना, सब्जी, फल के बजाए औषधीय खेती, पेड़ों की खेती, प्रसंस्करण और एग्रो फॉरेस्ट्री की तरफ बढ़ रहे हैं. अगर आप भी खेती के साथ ऐसा ही एक मुनाफेदार बिजनेस करना चाहते हैं तो बांस की खेती (Bamboo Farming) और प्रसंस्करण का एग्री बिजनेस आइडिया आपको अच्छा पैसा दिलवा सकता है.

बता दें कि एक बार बांस की बुवाई के बाद अगले 40 साल तक किसान मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय बांस मिशन भी चलाया है, जिसके तहत किसानों को बांस के पौधों पर सब्सिडी भी दी जाती है. अगर, साथ में बांस से तमाम प्रॉडक्ट्स बनाने का बिजनेस भी करना चाहते हैं तो उसके लिए सरकार की तरफ से सब्सिडी और लोन की सुविधा दी जाती है. आइए जानते हैं कैसे ये बिजनेस आइडिया कम खर्च में किसानों को सालोंसाल मुनाफा कमाकर दे सकता है.

इन राज्यों में करें बांस की खेती

बांस की खेती करने के लिए सबसे पहले ये जान लें कि बांस की खेती के साथ दूसरी कोई फसल नहीं लगाई जा सकती यानी अगले 40 साल तक आपको उस एरिया से सिर्फ बांस का उत्पादन ही मिलेगा, इसलिए कितनी जमीन पर बांस के पौधे लगाना चाहते हैं, ये निर्धारित कर लें. एक्सपर्ट्स की मानें तो एक हेक्टेयर में बांस की खेती करने के लिए 1500 पौधों की रोपाई कर सकते हैं, जो अगले 3 साल में तैयार हो जाती है, हालांकि बांस की हार्वेस्टिंग पूरी तरह से किसान के ऊपर निर्भर करती है.

किसान बाजार भाव जानकर या अपनी आवश्यकतानुसार बांस की हार्वेटिंग जल्दी या कुछ सालों बाद भी ले सकते हैं. ये फसल खराब नहीं होती और समय के साथ इसकी क्वालिटी भी मजबूत हो जाती है. भारत में बांस की खेती के लिए मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक, नगालैंड, त्रिपुरा, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखंड व महाराष्ट्र आदि राज्यों में मिट्टी और जलवायु सबसे अनुकूल रहते हैं. 

सरकार देगी सब्सिडी
बांस की खेती को बढ़ावा देन के लिए भारत में राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) चलाया जा रहा है. साथ ही, बांस की खेती के लिए सरकार की तरफ से 50% आर्थिक मदद भी जाती है. अधिक जानकारी के लिए अपने जिले के नजदीकी कृषि विभाग के कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं या राष्ट्रयी बांस मिशन का ऑफिशियल वेबसाइट https://nbm.nic.in/ को भी विजिट कर सकते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, बांस की खेती के लिए 1 पौधा 240 रुपये का मिलता है, जिस पर सरकार से 120 रुपये प्रति पौधा सब्सिडी मिल जाती है.

एक एकड़ में 1500 पौधों की रोपाई की जा सकती है, जिसमें कुल 3 लाख 60 हजार का खर्च का सकता है. इसमें किसान को 1 लाख 80 हजार तक की सब्सिडी मिल सकती है. यह पूरी तरह से किसान के ऊपर निर्भर करता है कि वो कितने एरिया में बांस की खेती करना चाहता है या कौन-सी किस्म का बांस लगाना चाहता है. इस संबंध में भारतीय और विदेशी बाजार की मांग का भी ध्यान रखना होगा, जिससे ज्यादा फायदा हो सके.

बांस की खेती में लागत और आमदनी

एक्सपर्ट्स के मुताबिक बांस की अलग-अलग किस्मों के आधार पर एक एकड़ में बांस के 1500 से 2500 पौधों की रोपाई कर सकते हैं. इस बीच बांस का एक पौधा 240 रुपये का पड़ता है तो एकड़ के लिए 3,60,000 से 5 लाख तक का खर्च आ सकता है, जिस पर सरकार की तरफ से 50 प्रतिशत सब्सिडी मिल जाती है. वहीं उत्पादन की बात करें तो एक हेक्टेयर बांस की खेती से 25 से 30 टन बांस निकलता है, जो बाजार में 2,500 से 3,000 रुपये प्रति टन के भाव बिकता है. इस हिसाब से 3 साल बाद प्रतिवर्ष एक हेक्टेयर से 7 से 8 लाख रुपये कमा सकते हैं.

बांस का बाजार

भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में बांस का बाजार बढ़ता जा रहा है. लोग अब प्लास्टिक के बजाए बांस के इको फ्रेंडली उत्पादों को अपना रहे हैं. दुनिया में चीन को बांस के सबसे बड़े उत्पादन का खिताब प्राप्त है. नेपाल और जापान में तो बांस से घर तक बनाए जाते हैं. भारत में भी इको टूरिज्म के चलते बांस का काफी अच्छा बाजार है.

इससे रोजमर्रा के सामान रसोई के लिए बर्तन, फर्नीचर, खिलौने, पेंटिंग, सजावटी सामान और हैंडीक्राफ्ट बनाए जाते हैं, जिसकी मांग काफी अच्छी है. कई फर्नीचर और इको फ्रैंडली उत्पाद बनाने वाली कंपनियां किसानों के साथ बांस की कांट्रेक्ट फार्मिंग भी कर रही हैं. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि पर्यावरण की बेहतरी, किसानों की अच्छी आमदनी और ग्रामीण रोजागर के लिए बांस की खेती का अच्छा भविष्य है.