किसानों को मालामाल कर देगी गेहूं की ये उन्नत किस्में, अधिक पैदावार के लिए इस तकनीक से करें गेहूं की खेती

गेहूं भारतीय किसानों के लिए मुख्य खाद्य फसलों में से एक है और इसकी बुआई का महत्वपूर्ण हिस्सा बनता है। लेकिन अब वक्त आ गया है कि हम गेहूं की उन्नत किस्मों के बारे में विस्तार से जानें, जिन्हें बुआई के लिए चुनना चाहिए ताकि हम अधिक उत्पादन और लाभ प्राप्त कर सकें। इस लेख में हम इन उन्नत किस्मों की विशेषताओं के साथ गेहूं की अगेती के बारे में चर्चा करेंगे।
गेहूं की अगेती
गेहूं, भारत में बुआई की जाने वाली मुख्य खाद्य फसलों में से एक है, और यह देश के किसानों के लिए महत्वपूर्ण जीवनोपचारिक स्रोत है। गेहूं की अगेती की तकनीकें और उन्नत किस्में किसानों के उत्पादकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
गेहूं पीबीडब्ल्यू-677 किस्म:
प्रमुख बुवाई क्षेत्र: यह किस्म हरियाणा, पंजाब, गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है।
विशेषता: यह किस्म भारत के अधिकतर क्षेत्र में की जा सकती है एवम् उत्पादन के लिहाज से तकरीबन प्रति एकड़ पैदावार लगभग 23 क्विंटल तक होता है।
गेहूं एचडी-3086 किस्म:
प्रमुख बुवाई क्षेत्र: इस किस्म की बुवाई क्षेत्र की बात करे तो यह उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में उगाई जाती है।
विशेषता: इस किस्म की प्रमुख विशेषता यह है कि यह किस्म पीला रतुआ रोग से प्रभावित नहीं होती और प्रति एकड़ उत्पादन लगभग 20 से 25 क्विंटल तक होता है।
गेंहू एचडीसीएसडब्ल्यू-18 किस्म:
प्रमुख बुवाई क्षेत्र: यह किस्म उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है।
विशेषता: गेहूं की इस किस्म से प्रति एकड़ 25 से 28 क्विंटल उत्पादन देने में सक्षम है, दूसरी ओर गर्मी भी इसको प्रभावित नहीं करती।
गेंहू डब्ल्यूएच-1105 किस्म:
प्रमुख बुवाई क्षेत्र: इसका प्रमुख उत्पादन हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों में होता है।
विशेषता: गेहूं की इस किस्म की प्रमुख विशेषता यह है कि यह किस्म रतुआ रोग के प्रति सहनशील है, वही उत्पादन के लिहाज से यह किस्म 20 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ देने में सक्षम है।
गेंहू एचडी -2967 किस्म:
प्रमुख बुवाई क्षेत्र: इसकी खेती प्रमुख रूप से हरियाणा राजस्थान पंजाब एवम् पूर्वी उत्तर प्रदेश में की जाती हैं
विशेषता: गेहूं की यह किस्म झुलसा रोग के प्रति प्रतिरोधक है एवम् उत्पादन के लिहाज से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देने में सक्षम है, इसको पहली बार 2011 में अधिसूचित किया गया था।