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हर साल पुल की मरम्मत में करोड़ों खर्च, लकड़ी से बना, जानें कई लोगों की जान लेने वाले 140 साल पुराने Morbi Bridge की कहानी

मोरबी में हादसे का शिकार हुआ सस्पेंशन पुल काफी पुराना है। 1887 के आसपास इसका निर्माण तत्कालीन मोरबी शासकों ने कराया था। ऐसा कहा जाता है राजा नदी पार करने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे। जब इस पुल का निर्माण हुआ तो सस्पेंशन पुल के निर्माण के उपलब्ध सबसे आधुनिक तकनीक इस्तेमाल में लाई गई थी।
 
Morbi Bridge

हाइलाइट्स

  • मोरबी में मच्छु नदी पर स्थित है यह सस्पेंशन ब्रिज
  • 26 अक्तूबर को नए साल पर इसे खोला गया था
  • दिवाली वेकेशन के चलते बड़ी संख्या में पहुंचे थे लोग
  • इस ब्रिज के रखरखाव के लिए दिया गया था टेंडर

अहमदाबाद: गुजरात के मोरबी में हादसे का शिकार हुआ झूलता ब्रिज काफी पुराना है। आजादी से पहले 1887 के आसपास इस ब्रिज का निर्माण मोरबी के तत्कालीन राजा वाघजी रावाजी ठाकोर ने करवाया था। मच्छु नदी पर बना यह ब्रिज मोरबी के लोगों के एक प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट था।

मोरबी के शासकों के जमाने में बने इस पुल की खासियत यह थी कि जब इसका निर्माण किया गया था तो यूरोप में मौजूद सबसे आधुनिक तकनीक इसके निर्माण में इस्तेमाल की गई थी। इसके बाद अंग्रेजों के शासन काल में भी यह ब्रिज अच्छी इंजीनियरिंग का प्रतीक बना रहा। पिछले कई सालों से समय-समय पर इसकी मरम्मत की जा रही थी।

दिवाली पर के पर्व खोले जाने से पहले यह पुल सात महीने तक मरम्मत के लिए बंद था। यही वजह है कि यह पुल खोला गया, तो बड़ी संख्या लोग सैर-सपाटे के इस ब्रिज पर पहुंचे और तभी यह हादसा हो गया। 1.25 मीटर चौड़ा यह ब्रिज दरबार गढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को जोड़ता है। इसके मरम्मत पर 2 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।

नए साल पर खुला था ब्रिज
राजकोट जिले से 64 किलोमीटर की दूरी पर मच्छु नदी पर बना यह पुल लोगों के आर्कषण का केंद्र था। इसीलिए इंजीनियरिंग कला और पुराने होने के कारण इस गुजरात टूरिज्य की सूची में किया गया था। इस ब्रिज को नए साल पर आम लोगों के लिए खोला गया था। इससे पहले यह ब्रिज सात महीने से बंद था, इसे ठीक किया जा रहा था।

जब इसे खोला गया था तब कहा गया था कि विशेषज्ञों की मदद से इस ठीक कर लिया गया है। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि पुल पर क्षमता से ज्यादा लोग मौजूद थे, इसीलिए यह हादसा हुआ। इस पुल की कुल लंबाई 765 फुट और चौड़ाई साढ़े चार फुट की है।

जानकारी के अनुसार पुल के नवीनीकरण के लिए सरकारी टेंडर ओधवजी पटेल के स्वामित्व वाले ओरेवा ग्रुप को दिया गया था। इसी ग्रुप को अगले 15 साल तक इस ब्रिज की देखरेख करनी थी, लेकिन खुलने के पांचवें दिन ही यह ऐतिहासिक पुल नदी में गिर गया।