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हरम में ठूंस-ठूंस के भरी थीं 5,000 सुंदर महिलाएं, संबंध बनाने के बाद निकलती थी लाश, जानें मीना बाजार का काला सच

 
Meena Bazaar History

मीना बाजार ( Meena Bazaar History ) का नाम हर किसी ने कही न कही से सुन रखा होगा, मीना बाजार ( Meena Bazaar History ) लगभग सभी लोग जाते भी होंगे लेकिन क्या आप सभी को इसका वो काला इतिहास पता है जिसके बारे में आपको जानना बहुत जरूरी है। भारत के ज्ञात इतिहास में कामुकवृत्ति के दो चरित्र मिलते हैं। एक मांडव का गयासुद्दीन ( Ghiyasuddin Tughluq ) और दूसरा अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar )। इनमें भी अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) ने गयासुद्दीन ( Ghiyasuddin Tughluq ) को बहुत पीछे छोड़ दिया।

गयासुद्दीन ( Ghiyasuddin Tughluq ) के नक्शे कदम पर पर आज भी सभी शांतिदूत चलते हैं यानी सिर्फ हिन्दू की लड़कियों को शिकार बनाओ शांतिदूत की लड़कियों को नहीं। लेकिन, अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) ने तो मानवता की सारी मर्यादाएं तोड़ दी थीं। क्या शत्रु, क्या मित्र, क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या प्रजा, क्या दरबारी, किसी की भी सुंदर बहन-बेटी इस कामी कीड़े की वासना से नहीं बच पाई थी।

शांतिदूत प्रजा के साथ-साथ हिन्दुओं ने भी परदा प्रथा को अपना लिया था। इस कारण बुरके और घूंघट में छिपी सुंदर स्त्रियों को ढूंढ निकालना आसान नहीं था। दरबारियों के जनानखाने सुंदर हिन्दू, मुसलमान महिलाओं से भरे पड़े थे। दरबारियों की कन्याएं भी जवान हो रही थीं, किंतु परदे की ओट में थीं। धूर्त अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) ने अपने दरबारियों और प्रजा की सुंदर महिलाओं को खोजने का एक आसान उपाय निकाला।

उसने राजधानी में मीना बाजार ( Meena Bazaar History ) लगाने की परंपरा डाली। अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) का मीना बाजार ( Meena Bazaar History ), आगरे के किले के सामने मैदान में लगना प्रारंभ हुआ। शुक्रवार को पुरुष वर्ग तो पांच बार की नमाज में व्यस्त रहता था। इस दिन किले में और किले के आसपास पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। सारे मैदान में महिलाएं दुकान सजाकर बैठती थीं और महिलाएं ही ग्राहक बनकर आ सकती थीं।

अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) का आदेश था कि प्रत्येक दरबारी अपनी महिलाओं को दुकान लगाने के लिए भेजे। नगर के प्रत्येक दुकानदार को भी हुक्म था कि उनके परिवार की महिलाएं उनकी वस्तुओं की दुकान लगाएं। इस आदेश में चूक क्षम्य नहीं थीं। किसी सेठ और दरबारी की मीना बाजार ( Meena Bazaar History ) में दुकान का न लगाना अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) का कोपभाजन बनना था।

धीरे-धीरे मीना बाजार ( Meena Bazaar History ) जमने लगा। निर्भय बेपरदा महिलाएं खरीद-फरोख्त को घूमने लगीं। अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) की कूटनियां और स्वयं अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) औरत की वेश में मीना बाजार ( Meena Bazaar History ) में घूमने लगे। प्रति सप्ताह किसी सेठ या दरबारी की सुंदर महिला पर गाज गिरती। वह अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) की नजरों में चढ़ जाती अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) की कूटनियां किसी भी प्रकार उसे किले में पहुंचा देतीं।

कुछ तो लोकलाज का भय, कुछ पति के प्राणों का मोह, लुटी-पिटी महिलाओं का मुंह बंद कर देता। साथ ही अन्य महिलाओं द्वारा यदि पुरुषों तक बात पहुंचती भी तो मौत के डर से मन-मसोसकर रह जाते। अस्मतें लुटती रही और मीना बाजार ( Meena Bazaar History ) चलता रहा।

कभी-कभी कोई अत्यंत सुंदर स्त्री अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) को भा जाती और वह उसके घर वालों के संदेश भिजवा देता कि डोला हरम में भिजवा दें। यदि स्त्री विवाहित हुई तो उसके पति को तलाक के लिए बाध्य करता। इस प्रकार कई दरबारियों की कन्याएं और विवाहिताएं आगरे के किले में लाई गईं। उच्च वंश के शाह अबुल माली और मिर्जा शर्फुद्दीन हुसैन जैसे लोगों की महिलाएं भी अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) की वासना की शिकार बनी थीं।

इन्हीं दिनों एक शेख की पत्नी अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) की निगाह में चढ़ गई। अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) ने शेख पर दबाव डाला कि अपनी पत्नी को तलाक दे दे ताकि मैं उसे अपने हरम में डाल सकूं। न तो शेख अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता था, न उसकी पत्नी ही इस पशु के पास जाना चाहती थी।

Meena Bazaar History

आगरा के और भी 10-12 परिवारों की महिलाओं को अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) अपने हरम में डालना चाहता था। आखिर आगरा के चुनिंदा मुसलमान दरबारियों की एक गुप्त बैठक हुई जिसमें अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) की हत्या की योजना बनाई गई। शर्फुद्दीन का एक हिन्दू गुलाम था फुलाद, बाड़मेर का रहने वाला, ऊंचा-पूरा, कद्दावर जवान आबूमाली के मित्र शर्फुद्दीन ने उसे अपनी गुलामी से मुक्त किया और बदले में अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) को मार डालने का वचन लिया।

सदा अंगरक्षकों से घिरे रहने वाले अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) को तलवार या भाले से मारना संभव नहीं था। बंदूकें उस समय बारूद की एक नाल या दो नाल की हुआ करती थीं, जिनसे एक या दो बार ही फायर किया जा सकता था। तब निर्णय हुआ कि तीर से अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) को मारा जाए। तीर भी अधिक दूरी से मारना था, इस कारण मजबूत कमान की जरूरत पड़ी ताकि तीर शरीर के भीतर तक पैठ सकें।

फुलाद ने तीरंदाजी के अभ्यास में कई धनुष तोड़ डाले, फिर एक लोहे का बना कन्धहारी धनुष उसे दिया गया, लोहे के धनुष से अभ्यास के बाद घातक दल अवसर की ताक में रहने लगा।

Meena Bazaar History Explained

आगरा में तो काम बना नहीं। पता लगा जनवरी 1564 में अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) शेख निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर जियारत के लिए जाना चाहता है। घातक दल के लोग जनवरी के प्रथम सप्ताह में दिल्ली पहुंच गए और उपयुक्त स्थान की तलाश कर घात लगाकर बैठ गए।

औलिया की दरगाह के मार्ग में माहम अनगा द्वारा निर्मित एक दुमंजिला मदरसा भी था। इसी मदरसे की छत पर फुलाद तीरों का तरकश लेकर जा बैठा। माहम अनगा के पुत्र आदम खां को किले की दीवार से गिराकर अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) ने मरवाया था और पुत्र के गम में कुछ दिन बाद अनगा भी मर गई थी। अनगा का परिवार भी अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) के खून का प्यासा था और हत्या-योजना में शामिल था।

11 जनवरी 1564 को अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) ने औलिया की दरगाह पर जा दर्शन किए। अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) दरगाह से लौट रहा था। उसके अंगरक्षक बिखरे हुए थे। कुछ तो साथ थे कुछ आगे बढ़ गए थे और कुछ दरगाह में प्रार्थना के लिए रुके थे। अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) जैसे ही मदरसे के नीचे आया, एक सनसनाता तीर आकर उसका कंधा बिंध गया। अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) जोर से चीख पड़ा। अंगरक्षकों ने उसे अपनी ढालों की ओट में ले लिया और तीर की दिशा में निगाहें दौड़ाईं।

देखा तो मदरसे की छत से एक विशालकाल व्यक्ति तीर बरसा रहा है। सन्नाते तीर अंगरक्षकों की ढालों से टकरा रहे थे। लोग मदरसे की ओर तलवारें सूंत दौड़ पड़े। फुलाद के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए।

अंगरक्षक घुड़सवारों ने अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) की सवारी के मार्ग में आने वाले सभी बाजार बंद करवा दिए। प्रत्येक घर के खिड़की-दरवाजे बंद करवा दिए गए। घरों की छतों पर मुगल निशानेबाज बैठा दिए गए। इस प्रकार पूर्ण सुरक्षा के साथ अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) दिल्ली के महल में लाया गया।

तीर काफी भीतर तक धंस गया था और लगातार खून बह रहा था। कुशल जर्राहों (सर्जन) ने कंधे से तीर निकला। दस दिन तक हकीमों से इलाज करवा अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) पालकी में बैठ आगरा लौटा। गहरे घाव के कारण वह घोड़े की सवारी के अयोग्य था और हाथी की सवारी में निशानेबाजों का खतरा था। (स्मिथ पृष्ठ 61)

मौत के भय ने अकबर ( Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar ) को झकझोर दिया था। उसने बलात लोगों की पत्नियां छीनना तो बंद कर दिया, लेकिन मीना बाजार ( Meena Bazaar History ) चलता रहा और महिलाओं की आबरू लुटती रही। फर्क इतना था कि औरतें हमेशा के लिए हरम में रोकी नहीं जाती थीं। एकआध दिन या कुछ घंटों के बाद छोड़ दी जाती थीं।