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Mughal Era: पहली बार होली देख चौंक गए थे मुगल! खुशी के मारे रंग की जगह लोगों को शराब से नहलाया

Mughal Holi Celebration: मुगल काल (Mughal Era) में होली (Holi) बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती थी. एक बार तो लोगों को रंग की बजाय शराब से नहलाया गया था. पहली बार जब बाबर ने लोगों को होली खेलते देखा तो वह चौंक गया था.
 
Mughal Holi Celebration

Mughal Era Holi: होली (Holi) का त्योहार भारत में सदियों से मनाया जा रहा है. लेकिन जब पहली बार लोगों को होली खेलते मुगलों ( Mughals ) ने देखा था तो वह चौंक गए थे. मुगल बादशाह बाबर को समझ नहीं आ रहा था कि लोग आखिर एक-दूसरे को रंग क्यों लगा रहे हैं? वे होली पर एक-दूसरे को रंग में भिगो क्यों रहे हैं? जानकारी के मुताबिक, होली को मुगल काल ( Mughal History ) में ईद-ए-गुलाबी और आब-ए-पाशी नाम दिया गया था. होली पर जब बाबर ने देखा कि लोग हौदिया में पानी भर रहे हैं, उसमें रंग घोलकर एक-दूसरे को भिगो रहे हैं तो उसने हौदिया में शराब भरवा दी थी. कहा जाता है कि अकबर भी होली के दिन अपने किले से निकलता था और आम लोगों के साथ रंग खेलता था.

जब शराब में नहलाए गए लोग!

इतिहासकार मुंशी जकाउल्ला की किताब तारीख-ए-हिंदुस्तान ( Tarikh-e-Hindustan ) में लिखा है कि बाबर ने जब देखा कि लोग एक-दूसरे को रंग से भरी हौदिया में गिरा रहे हैं तो उसे यह बात बहुत पसंद आई है. बाबर यह देखकर झूम उठा था और उसने फिर रंग वाली हौदिया में शराब भरवा दी थी.

मुगल बादशाहों ( Mughal Emperor ) को अजीज थी होली

वहीं, अकबर ( Mughal Emperor Akbar ) के नौरत्नों में से एक अबुल फजल ने अपनी किताब आइन-ए-अकबरी में लिखा कि अकबर को भी होली से काफी लगाव था. वह होली पर होने वाले संगीत के कार्यक्रमों में हिस्सा लेता था. होली पर अपने किले से बाहर निकलता था और आम लोगों के साथ होली खेलता था.

ईद-ए-गुलाबी ( Eid-e-Gulabi ) दिया गया नाम

बताया जाता है कि मुगल बादशाह जहांगीर ( Mughal Emperor Jahangir ) भी किले के झरोखे में बैठकर लोगों को होली खेलते हुए देखना पसंद करता था. हालंकि उसे रंग खेलना पसंद नहीं था. फिर शाहजहां के काल में भी होली हर्षोल्लास से मनाई गई. इसी दौर में होली को ईद-ए-गुलाबी ( Eid-e-Gulabi ) और आब-ए-पाशी ( Ab-e-pashi) नाम मिला. मुगलों ( Mughals ) के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर ने भी होली पर लिखा है कि ‘क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी, देखो कुंवरजी दूंगी मैं गारी.’