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हरियाणा में 1967 से लेकर 2019 तक 52 वर्ष के इतिहास में 13 विधानसभा चुनाव में तीन मौकों पर बनी हैं प्रचंड बहुमत की सरकारें

 
हरियाणा में 1967 से लेकर 2019 तक 52 वर्ष के इतिहास में 13 विधानसभा चुनाव में तीन मौकों पर बनी हैं प्रचंड बहुमत की सरकारें

हरियाणा का सियासी मिजाज बड़ा अनूठा रहा है। साल 1967 से लेकर 2019 तक 52 वर्ष के राजनीतिक इतिहास में 13 विधानसभा चुनाव में केवल तीन मौकों पर ही प्रचंड बहुमत के साथ सरकारें बनीं। शेष चुनावों में या तो जादुई आंकड़े के आसपास रहकर सरकारों का गठन हुआ या जोड़ तोड़ की सरकारें बनीं।

प्रदेश में कई बार ऐसे मौके आए जब त्रिशंकू विधानसभा का गठन हुआ है। हरियाणा का गठन होने के बाद साल 1967 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। कांग्रेस को 81 में से 48 सीटों पर जीत मिली। बहुमत से सरकार बनी, पर राव बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार अधिक समय नहीं चली। साल 1968 में मध्यावधि चुनाव हुए और कांग्रेस को 48 सीटों पर जीत मिली। बंसीलाल के नेतृत्व में इस बार सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद साल 1972 के चुनाव में कांग्रेस को 52 सीटों पर जीत मिली और बंसीलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।

वर्ष 1977 में पहला मौका आया जब प्रदेश में चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया और 75 सीटों का बहुमत हासिल करने के साथ चौ. देवीलाल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद साल 1982 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जादुई आंकड़े से 10 सीटों से दूर 36 पर अटक गई। उस चुनाव में 16 आजाद विधायक बने। कांग्रेस ने आजाद एवं अन्य विधायकों के सहारे जोड़-तोड़ की सरकार बनाई।

इसके बाद साल 1987 में देवीलाल के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। 1991 में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत तो नहीं मिला, लेकिन 51 सीटों पर जीत हासिल करते हुए एक स्थिर सरकार बनाई। 1996 में बंसीलाल ने जोड़-तोड़ की सरकार बनाई। ऐसा ही आलम साल 2000 में भी रहा। इनैलो ने 47 सीटों यानी जादुई आंकड़े से एक सीट अधिक जीती।

ऐसे में ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इनैलो की सरकार बनी। इसके बाद 2009 में भी कांग्रेस जादुई आंकड़े से 6 अंक नीचे 40 पर अटक गई। तब कांग्रेस ने आजाद विधायकों का सहारा लेकर सरकार बनाई। जाहिर है कि हरियाणा में प्रचंड बहुमत की सरकारें महज तीन बार ही बनी हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 40 विधायकों के साथ बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। जादुई अंक से नीचे रही तो जजपा का साथ लिया और निर्दलीयों संग मिलकर सरकार बनाई। हरियाणा में अब तक 3 चुनाव ऐसे रहे हैं जब प्रचंड बहुमत के साथ सरकारें बनीं।

साल 1977 में चौ. देवीलाल के नेतृत्व में जनता पार्टी ने 75 सीटों पर जीत दर्ज की। देवीलाल मुख्यमंत्री बने। मजेदार बात यह रही कि प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आए देवीलाल की सरकार दो बरस तक नहीं चली। साल 1979 में राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए भजनलाल ने देवीलाल की सरकार गिरा दी और स्वयं मुख्यमंत्री बन गए।

इसके बाद साल 1987 में देवीलाल के नेतृत्व में लोकदल एवं उनके सहयोगी दलों ने 90 में से 85 रिकॉर्ड सीटों पर जीत दर्ज की। 87 के बाद 2005 में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला। 2005 के चुनाव में कांग्रेस ने 90 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की। साल 1996 में हरियाणा विकास पार्टी एवं भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा।

हविपा को 33, जबकि भाजपा को 11 सीटों पर जीत मिली। बंसीलाल के नेतृत्व में किसी तरह से सरकार बन गई, पर यह सरकार अधिक समय तक नहीं चली। 1999 में यह सरकार गिर गई। इसी तरह से साल 2009 में भी कांग्रेस ने जोड़-तोड़ कर सरकार बनाई। 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 46 के जादुई अंक से दूर रहते हुए 40 पर सिमट गई।

कांग्रेस ने 7 निर्दलीय विधायकों एवं बाद में हजकां के पांच विधायकों को अपने पाले में करके सरकार बनाई। इस बार के चुनाव में भी भाजपा का आंकड़ा 40 पर रुक गया और जजपा के 10 व 7 निर्दलीयों के सहयोग से मनोहर लाल खट्टर दोबारा मुख्यमंत्री बन पाए।